Menu
blogid : 18439 postid : 753459

राजनीती! अब कांग्रेस के दिन लद गए हैं?” – Jagran Junction Forum

samar
samar
  • 3 Posts
  • 1 Comment

क्या कांग्रेस के दिन लद गए हैं ? ये एक बेहद संवेदनशील और मंथन करने का विषय है क्योंकि आज सत्तारूढ़ राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन यानि भारतीय जनता पार्टी को हमने जिस वजह से सत्ता सौंपा है वो आखिर क्या है क्या कांग्रेस को जिस चीज़ की सजा इतनी बड़ी हार के रूप में मिली है क्या सत्तारूढ़ पार्टी हमारी आशाओ पे खरा उतरेंगी. कांग्रेस के दिन लद गए इतनी जल्दी ये कहना शायद पूरी तरह मैं नहीं समझता के ठीक है क्योंकि दिल्ली में हुए विधान सभा चुनाव इस बात का प्रमाण है के जनता विकल्प चाह रही है! जनता कांग्रेस को दोबारा सत्ता में नहीं लाना चाहती थी परन्तु हमारे देश में बड़े स्तर पर राष्ट्रीय पार्टी के आभाव में जनता ने मात्र एक साल पुरानी पार्टी को सत्ता सौंपा तो ये समझने के लिए काफी है के ये कांग्रेस की हार नहीं है बल्कि ये भ्रष्टाचार और मंहगाई के खिलाफ जनता का आक्रोश और विकल्प ना होने के आभाव में जनता ने आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंपा इस हार से कांग्रेस पार्टी सबक लेकर संभल भी नहीं सकती थी क्योंकि लोकसभा का चुनाव एकदम सामने था और उसी समय विधान सभा के चार राज्यों में कांग्रेस की लचर प्रदर्शन ये समझने की लिए काफी थी की ये कांग्रेस के लिए बेहद बुरी खबर है जो उसे लोकसभा चुनाव में उसे भुगतना था हालाँकि ये सभी राज्य पहले से भाजपा शासित राज्य है दिल्ली को छोड़ कर फिर भी कांग्रेस ने भ्रष्टाचार और ऐसे ही संवेदनशील मुद्दे से हैट कर बस अपनी घिसी पिटी बातो को ही दोहराया जबकि ज़रूरत ये थी की कांग्रेस जनता में विश्वास जगाये कांग्रेस को कोल् आवंटन घोटाला और २ग स्पेक्ट्रम ब्लैक मनी आदि जैसे मुद्दे पे जनता से रु बरु होना चाहिए था लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकी और बस लोकसभा में पारित बिल गिनती रही ये इतनी लम्बी पंक्ति लिखने का मतलब ये है के हम ये पहले समझे की इस बार सत्ता हमने क्यों हस्तांतरित किया है! अब ये सब कुछ सत्तारूढ़ दल पर निर्भर है के वो कांग्रेस को दोबारा उठने का मौका देती है या सच में भारत की सबसे बड़ी पार्टी बनकर देश की सेवा करके जनता को विकल्प ना चाहने या चुनने पे मजबूर करती है क्योंकि कांग्रेस ने मंहगाई पे नियंत्रण नहीं किया विपक्ष ने ज़ोर शोर से भ्रष्टाचार मंहगाई और विकास का मुद्दा उठाया जिससे जनता त्राहि त्राहि कर रही थी ऐसे में बदलाव बहुत चाहिए था हर तरफ बस लोग बस बदलाओ चाह रहे थे ऐसे हमारे पास केवल एक पार्टी थी भाजपा और हमने वो किया जिसकी देश को सख्त ज़रूरत थी.

अब प्रश्न ये है की क्या भारतीय राजनीतिक इतिहास की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दौर अब समाप्त हो गया है?- उपरोक्त में लिखे पंक्तियों से स्पष्ट है की भारत में राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बहुत कम है जो राष्ट्रीय स्तर पर सरकार बनाने की छमता रखती है इसलिए अगर सत्तारूढ़ पार्टी भी मंहगाई भरष्टाचार और वो सारे मुद्दे जो कांग्रेस की इतनी बुरी हालत के ज़िम्मेदार है को अगर नहीं संभाल पाती है तो जनता फिर से विकल्प तलाश करेगी जो एक बार फिर से कांग्रेस पे जाकर वो तलाश ख़त्म होती है इसीलिए ये सब कुछ सत्तारूढ़ पार्टी पर निर्भर करता है के वो कांग्रेस को फिर से उठने का मौका देती या है देश के विश्वास पे खरा उतरती है.

क्या आज कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जो पार्टी की स्थिति को सुधार सके? ये प्रश्न ऐसा प्रश्न है जो किसी विचार धारा से अलग कर्मो का आकलन करके देखना चाहिए कांग्रेस में भी कई कद्द्वार नेता है जैसे पी चिदंबरम खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी सत्ता और चटक मटक से दूर पार्टी को फिर से सँभालने की कोशिश करेंगे परन्तु अगर वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी पे नज़र डाले तो सत्ता में आने से पहले उसमे भी इस तरह की बाते सामने आरही थी और वरिष्ठ नेता एल के आडवाणी जी आदि के होते हुए भी अंदरूनी कलह बाहर आई तो समयअनुसार सबकुछ बदलता रहता है!

क्या कांग्रेस की हार की वजह परिवारवाद है?
परिवारवाद अपने देश भारत की अब जड़ो में समां गया है किसी भी पार्टी पे नज़र डाले तो कोई भी इस चीज़ से अछूता नहीं है चाहे वो छोटी पार्टी हो या बड़ी परिवार बाद हावी हर पार्टी में है तो इस चीज़ से इतर ध्यान इस चीज़ पे हो के आपके पास जो विकल्प है उनमे हम ये चुने की उनसब में सबसे बेहतर कौन है अगर परिवारवाद की बात करे और अगर ये नहीं होता तो इंदिरा गांधी राजीव गांधी जैसे कद्दावर लीडर इंडिया को नहीं मिलते तो हमे वंश और परिवारवाद से अलग कर्मो पे ध्यान लगाना चाहिए.

मनमोहन को यूपीए सरकार का जिम्मा सौंपना क्या पार्टी की सबसे बड़ी भूल है? भारतीय संविधान के अनुसार जब कोई पार्टी चुनाव जीतती या गठबंधन के आधार पे ५१% सीटें हासिल करती है तो उस पार्टी को सरकार बनाने न्योता मिलता है और पार्टी की एक संसदीय मीटिंग होती है उस मीटिंग में निर्णय लिया जाता है के किसे कोनसा विभाग उनकी योगिता के अनुसार मिलेगा तो मनमोहन सिंह जी को भारत के वरिष्ठ अर्थ शास्त्री है को उनकी टीम ने प्राइम मिनिस्टर का पद दिया ताकि देश की अर्थ व्यवस्था बेहतर हो परन्तु वो इसमें पूर्ण रूप से शायद सफल नहीं हो पाये और कोई भी पी एम तो संसदीय प्रणाली और संसद द्वारा पारित बिल पे ही काम करता है तो केवल मनमोहन सिंह को इस चीज़ के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता पिछली सरकार की सबसे बड़ी कमज़ोरी ये रही की वो पूर्ण बहुमत से नहीं बनी थी हर फैसले हर कदम पे एक अड़चन एक विवाद पार्टी का मान मनव्वल आदि भी इन सब में अहम भूमिका रखती है! कांग्रेस पूर्ण बहुमत से तब भी नहीं आई थी साल दर साल उसकी हालत बिगड़ती ही गई और कुछ इस तरह उसका हश्र हुआ किया वो विपक्ष की भूमिका में भी सक्षम नहीं है! कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को रिमोट कंट्रोल से चलाया मतलब देश का पी एम कोई और देश के फैसले कोई और कर रहा था एक प्रधान मंत्री अपने पुरे १० वर्षो के शासन में मीडिया को मात्र ४-५ बार सम्भोधित करते है जनता से उन्हें डायरेक्टली इंटरैक्ट उन्हें की आवशयकता थी जो उन्होंने नहीं किया उन्होंने जब आखिर में मीडिया को सम्भोधित भी किया तो प्रधानमंत्री के पद पे होते हुए उन्होंने इलेक्शन कम्पैग्न (चुनाव प्रचार) पे अधिक ध्यान दिया तो ये सबकुछ काफी है के वो केवल पद पे आसीन थे लेकिन हकीकत में पद को कोई और ऑपरेट कर रहा था ! मई छमा चाहूंगा अगर किसी भी पक्ष या वियक्ति को मेरे लेख से परेशानी हुई है !

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh